Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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युद्ध नहीं थम पाता यारो

 

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

 

 

झंझावाती रोज़ थपेड़े, आम आदमी खाता यारो।
ख़ास खड़ा ऊँचे हमलों से, देख-देख इतराता यारो।।

 

युग बदले,यह हाल न बदला, राजाओं का राज रहा है।
रैयत का तो दु:ख दर्दों से, वही पुराना नाता यारो।।

 

पहले तो वह जख़्मी करता, नमक डालता फिर जख़्मों पर।
शैताँ जन-जन के क्रंदन को, थोथा शोर बताता यारो।।

 

जहाँ चेतना है थोड़ी भी, वहाँ वेदना मिल ही जाती।
अब सपनों को भी ना मिलता, जीवन हँसता-गाता यारो।।

 

क़दम-क़दम पशुता के दर्शन, नित-नित रीत रही मानवता।
जो अपना बन सम्मुख आता, दुःख दे-दे कर जाता यारो।।

 

अन्तर्मन के कुरु क्षेत्र में, रक्त-धार बहती रहती है।
जब तक साँस नहीं थमती है, युद्ध नहीं थम पाता यारो।।

 

जो भी चाहे सुनकर रूठे, चाहे जो सुनकर खुश हो ले।
'सिद्ध' पोटली सच की खोले, साँची बात सुनाता यारो।।

 

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