Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दीद की शदीद आरजू लिए

 

रह लिए हैं आप के बिना बहुत।
क्या कहें कि चैन है छिना बहुत।।

 

दीद की शदीद आरजू लिए।
हो गया है राह देखना बहुत।।

 

दर्द से निजात जो नहीं मिली।
दर्द ही पे हो लिए फ़िदा बहुत।।

 

सोचना तो ठीक बात है मगर।
ठीक भी नहीं है सोचना बहुत।।

 

आपकी अभी से आँख नम हुई।
दर्द और भी है अनकहा बहुत।।

 

कौन सा है हादसा यहाँ हुआ।
'सिद्ध' आज वक़्त है डरा बहुत।।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

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