Thakurdas Siddh
14 जुलाई ·
- : ग़ज़ल : -
कुछ हक़ है हमारा भी, उसका तो न सब यारा।
ये बात मगर उसने, मानी है तो कब यारा।
वो देख रहा है ये, क्या देख रहा हूँ मैं,
निगरानी नहीं यूँ ही, कुछ तो है सबब यारा।
झाँसे में न आ जाना, मुस्कान से उसकी तुम,
शैतां को हमारे ही, ख़ूं की है तलब यारा।
मुँह फेर के निकला है, हर बार बगल से जो,
कुछ काम यक़ीनन है, दिखलाए अदब यारा।
उम्मीद लगा लेना, कुछ और न ज़ालिम से,
आएगा ज़हर लेकर, आएगा वो जब यारा।
पहले ही था उठ जाना, पर बात ये जाने दो,
है देर बहुत कर दी, कर और न अब यारा।
कुछ दिल में उतारोगे, है बात का मतलब तब,
इतना ही न कह देना, ये बात गजब यारा।
इन्सान उसे मुर्दा, ऐ 'सिद्ध' समझ लीजे,
शैतां के सितम पर जो, खुलते ही न लब यारा।
- ठाकुर दास 'सिद्ध'
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