(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'
हाँ मोम के दिल में अब, शोलों का बसेरा है।
इस बात को लेकर कि, हर ओर अँधेरा है।।
शैतान की नफ़रत से, लड़ते हुए हम ने तो।
इन्सान के दामन में, उलफ़त को उकेरा है।।
सोए हुए इन्साँ से, उम्मीद भला कैसी।
रातों का वहम तज कर, जागो तो सबेरा है।।
खाली न कभी बैठो, कुछ काम करो अच्छे।
खाली हुए इन्साँ में, शैतान का डेरा है।।
मतलब से भरी दुनिया, मैं पास सनम के फिर।
जाऊँ न भला कैसे, जब प्यार से टेरा है।।
तुम 'सिद्ध' की मानो तो, कोई न बड़ा-छोटा।
अब तोड़ ही डालो ये, मज़हब का जो घेरा है।।
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