Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आशियाना

 

एक पल का खुशनुमा
आशियाना है
फिर पता नहीँ हम कहाँ और
हमेँ कहाँ जाना है
बस इश्क मेँ डूबे रहे यूँ ही
नजरेँ बिछायेँ
हम मुसाफिर ही सही
कोई अजनबी तो आये
फिर कसम है आशिकी की उसे
प्यार का मतलब बता देँगे
गर यह ना कर सके हम तो
उसे इश्क करना सिखा देगेँ
वाकिफ है हम उनके इरादोँ से
घबराये रहते है उनके वादोँ से
उन्होने शतरंज का हमे घोङा बनाया है
तो हम भी जीत लेगे
यह इश्क का खेल
अपने दिल के हाथोँ से
इरादा उनका क्या है
यह हम नही जानते
उन्हे हमसे चाहिए क्या
यह भी नही जानते
पर कोई यह कहे कि
उन्हे हमसे इश्क नहीँ है
यह हम नहीँ मानते
यह हम नहीँ मानते
ठुकराकर ही सही
हमे अपना तो बना लीजिए
इश्क है या कुछ और
साफ साफ बता दीजिए
सवाल होगा आपके पास
कि यह पूछ कर हम क्या करेँगे
जवाब भी होगा कि
किसी दूसरे की तरफ घर कर लेगेँ
पर आपका अंदाजा हमेशा
गलत ही जाता है
आपका दिल हमारे
जसबातोँ को समझ नहीँ पाता है
आपके ठुकराने से हम भाग नहीँ जायेगे
बल्कि जब तक आप मानोँ नहीँ
आपसे ही इश्क निभायेगे
आपको चुनना हमारा
ख्याल नहीँ था पहलेँ
पर दिल के कानून ने
सिखा दिया है हमको
"नफरत करने वालोँ से ही
इश्क करते जाओ यारो
कुछ कर नहीँ सके इस दुनिया मेँ
तो नफरत ही मिटाओ यारो
प्यार महफूज कहाँ है
जनाजे तक जाने मे
सच तो यहीँ है दुनिया का
कि जीत है मर जाने मेँ
आखिर गिर कर ही सहीँ
मंजिल हमेँ मिल जायेगी
वरना खङे रहने मेँ क्या शौक
जिन्दगी खाली खाली रह जायेगी
कह रहा दीपक
यारोँ दुनिया से अब क्या घबराना है
मौत ही मिले ईनाम तो सही
पर इश्क करते जाना है
वक्त की रफ्तार से
कुछ तो रिश्ता पुराना है
वरना उपरवाला भी क्योँ बार बार सोचता
"चलोँ आशिक के प्यार को अब आजमाना है"

 

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