इस पुरूष प्रधान समाज मेँ हम पुरूषवर्ग आदिकाल से नारियोँ के उत्सर्ग मेँ बाधा उत्पन्न करते आये है... हम हमेशा खुद मेँ खुबियाँ ढुढते रहते है... समाज मेँ खुद को साबित करने के लिए अपने बल का प्रयोग करते है... नारियोँ के उत्थान मेँ जाने क्योँ हमेँ खुद का पतन नजर आता है !!! किसी नारी को आगे बढते हुए जाने क्योँ हम नहीँ देख सकते, खासकर खुद से.... आश्चर्य तो तब होता है जब अपनी संर्कीर्ण
मांसिकता का दोषी एक नारी को ठहराते है.... गलतिया हम करते है और कारण एक नारी को बताते है....वो पुरानी कहावत "जूती और स्त्री पैरोँ के नीचे ही रहे तो ठीक है", मुझे पता नहीँ किसने लिखी है परन्तु इतना जरूर पता है कि जिसने भी लिखा या कहा है वास्तव मेँ एक नारी एवं उसकी भावनाओँ को आजतक समझ ही नहीँ पाया.... 'नारी' शब्द ही संस्कार एवं सम्मान का हकदार है.... वेदना एवं संवेदना एक नारी ही इंसान को
सिखाती है... फिर भी हम भावना की इस मुर्ति को गलत ठहराते है और जाने क्योँ यह भूल जाते है कि हमेँ इस दुनिया मेँ जन्म एक नारी ने ही दिया है... एक माँ का कर्ज और एक भाई का फर्ज आखिर हम पूरा नहीँ करेगे तो कौन करेगा?जब भी समाज मेँ नारियोँ की सुरक्षा की बात होती है तो हमेँ सिर्फ कालेज की मिनी स्कर्ट और भारतीय समाज की उच्चवर्गीय महिलायेँ नजर आती है...जाने कैसे हम यह भूल जाते है कि भारत मेँ
साठ प्रतिशत जनसंख्या गाँवोँ मेँ जीवन-यापन करती है.... उन स्त्रियोँ के बारेँ मेँ उन लोगोँ का क्या ख्याल है जो इस ग्रामीण समाज का अभिन्न हिस्सा है.... क्या वह भूल जाते है कि उन्होनेँ या उनके पूर्वजोँ ने कहीँ न कहीँ उसी स्त्रीँ की कोख से जन्म लिया है या फिर ऐसी स्त्रियोँ के लिए उनके हिसाब से कोई अस्तित्व ही नहीँ है.... तो वे लोग ऐसा संकीर्ण ख्याल अपने दिलोँ-दिमाग से निकाल दे तो ही
बेहतर होगा.... यह बात भी सही है कि प्रेम के साथ-साथ धोखा देना भी एक स्त्री ही सिखाती है.... लेकिन हिन्दुस्तान मेँ बुराईयाँ किसमेँ नहीँ है ? हम मेँ... आप मेँ... सब मेँ है.. क्योँकि एक हाथ तो ताली बजती नहीँ... परन्तु गुनाह करने के लिए किसी दूजे हाथ का जरूरत भी नहीँ होता... बुराईयाँ अगर हम पुरूषोँ मेँ है तो कहीँ न कहीँ नारियोँ मेँ भी हैँ... आज हमारे सामने कई ऐसे मुद्दे उभरकर आते है जिसमे एक
महिला घोर अपराध को अंजाम देती है....कई महिलाऐ समाज मेँ मानसिक एवं परिवेश मे द्वेष भी फैलाती है परन्तु यह कहाँ का कानून है कि एक की गलती की सजा हम सौ या हजार को दे!!! भारतीय कानून के हिसाब से एक दोषी को सजा मिले या ना मिले परन्तु एक निर्दोष को सजा किसी भी कीमत पर नही होनी चाहिए....अगर कानून हमारे हिसाब से होता तो कसाब सरीखे कई हैवान अबतक उपर की सैर कर रहे होते.... उनके ऊपर अगर मुकदमा
चल रहा है तो यह पता करने के लिए कि कहीँ वो निर्दोष तो नहीँ.....
फिर तो भारतीय कानून के हिसाब से हम सब अपराधी है....
अतः हमे एक दूजे पर कीचङ उछालने के बजाय खुद मेँ सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए... भारतीय समाज मेँ नारी उत्थान और सुरक्षा का दायित्व नारी , पुलिसबल और सरकार से ज्यादा हम पुरूषोँ का हैँ...
भारत मेँ ऐसी संस्थायेँ भी बहुत है जो ईस उद्देश्य हेतु कार्यरत है परन्तु इतने बङे नारी समुदाय का विकास एवं सुरक्षा कोई संस्था या अकेली सरकार नही कर सकती बल्कि हमारा सहयोगा वाँछनीय हैँ...
रोज रोज के किस्सोँ पत्र पत्रिकाओँ मे पढ पढ कर लगता है हम अभी तक उबे नहीँ है...
रोज समाचार का शीर्ष वही हत्या , बलत्कार लूट , छेङछाङ... आखिर कब तक हम यह देखते सुनते और पढते रहेगे?....
कबतक हम खुद पर शर्म करते रहेँगेँ???
वक्त आ गया है... खुद जागने का और सबकोँ सचेत करने का...
किससे डरते होँ !!! सरकार , पुलिस... भूलोँ मत कि ये हमारेँ ही बनायेँ गयेँ वो खोखले स्तम्भ है जिसे हम जब चाहेँ गिरा सकते है... एक बार कोशिश तो करके देखोँ...
फिर वैसे ही सरकार घुटने टेकेगी जैसे आरूषि जेसिकालाल के केस मेँ हुआ...
मुझे ज्यादा इँगित करने की जरूरत नहीँ है आप खुद ही समझदार हो...
अतः जागोँ पुरूषोँ जागोँ... नारी की सुरक्षा ही हमारा सम्मान है...
आओँ वादा करेँ कि किसी को दोषी बनाने एवँ किसी दूजे को सचेत करने से पहले खुद मे सुधार करे...
-ठाकुर दीपक सिँह कवि
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