"एक और सरकारी दफ़तर खुलवा दो सरकार...
घिस गये है चप्पल-जूते अब मैं...
नया कहा से लाऊँगा?...
गरीबी भत्ता लेने आया था..
अब कैसे फिर महीनों पेट जलाऊँगा?
एक और सरकारी दफ़तर खुलवा दो साहब"
-ठाकुर दीपक सिंह कवि
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"एक और सरकारी दफ़तर खुलवा दो सरकार...
घिस गये है चप्पल-जूते अब मैं...
नया कहा से लाऊँगा?...
गरीबी भत्ता लेने आया था..
अब कैसे फिर महीनों पेट जलाऊँगा?
एक और सरकारी दफ़तर खुलवा दो साहब"
-ठाकुर दीपक सिंह कवि
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