Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

खरीददार भी तू ही हो

 

"आखिर...
मैं भी कितना नादान था...
वेवजह...
तेरे प्यार में परेशान था...
तुझे रास आती होगी वेवफ़ाई..
इस बात से...
जाने क्यूँ आज तक अनजान था..!!!

 

 

खुद को बेचने के लिए...
तैयार भी हूँ ऐ बेवफ़ा!!!...
बस शर्त यह है कि...
खरीददार भी तू ही हो..."

 


-ठाकुर दीपक सिंह कवि

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ