Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैनेँ क्या किया

 

कभी चाहत को मिटा दिया
कभी तुझे अपना बना दिया
दिल को ठन्डक देने के लिए
मैने जाने क्या क्या किया
सपने चुरा लिया वादे बना
लिया राहत की एक साँस ली
और यूँ ही दफना दिया
आँखो की उस दहलीज की
कयामत सजा लिया
वाह!कभी कभी खुद से पूछता हूँ
यह मैनेँ क्या किया
यह मैनेँ क्या किया
हर खबर की छाँव मेँ
एक कबर सी आँच बना लिया
तपते हुए ह्रदय पर मैनेँ
शीतल जल गिरा लिया
इरादोँ से टूटा हुआ गुलाब
मैनेँ खुद ही दबा दिया
फिर भी मैँ खुद से पूछता हूँ
यह मैनेँ क्या किया
यह मैनेँ क्या किया
दिन के साये को छिपाती है
यह मर्म चाँदनी
और मैनेँ किसी को बिन बताये
चाँद ही चुरा लिया
और फिर खुद से पूछने लगा
यह मैने क्या किया है
मगर एक प्रश्न
मेरे भी जेहन मेँ छिपा हुआ
कि वक्त ही वक्त था
पास मेरे
फिर भी क्यूँ
क्यूँ मैनेँ खुद को रूला दिया
और अब समझ मे आया
आखिर मैने क्या किया!!

 

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