Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सोचता हूँ

 

 

 

sochtahun

 

 

 

सोचता हूँ
काश!
दुनिया ऐसी होती...
गरीबों के बच्चें भी...
बच्चें गिने जाते...
उनके सपने भी...
सपने लगते सबको...!
सङकों पर जूठन और बचा खुचा
पाकर पेटों को ना सहलाते...

 

काश!
ऐसा होता कि
माँ-बाप और समाज
बेटी होने पर भी
बेटो जैसी खुशियाँ मनाती...

 

काश!
ऐसा होता...
पैसा इंसानियत को ना खरीद पाता
काश!
ऐसा होता...

 

 

-ठाकुर दीपक सिंह कवि

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