बचपन-बालिका:
मैं
एक लङकी हूँ
अभी-अभी
बङे ही सौभाग्य से
मुझे जन्म मिला
सौभाग्य क्यूँ?
यह प्रश्न तो उनसे पूछिए
जो माँ बाप होकर भी
अपनी बेटी को दफ़नाकर आये है
कुछ को तो भूख निगल गयी
कुछ को तो स्वार्थ!
मैँ एक सौभाग्यशाली लङकी हूँ
दुनिया को सामने पाकर
निश्छल,स्वच्छ,संवेदनशील
युवा-स्त्री:
मैं अब जवान हूँ
मुझे हक़ है फैसले लेने का
पर अभी भी मेरे रास्ते मेँ
समाज हैं,रूढिवादी विचार हैं
विवश्ता हैं,लाचार हूँ
अभी भी मैं
आज भी मुझे
पत्नि के दायित्व की समझ
बहन का विश्वाश
माँ की ममता
बहु की मर्यादा
का आभास हैँ
वृद्दा:
अब मैं आखिरी पङाव पर
सम्मान,खुशी और विश्वास की आश में हूँ
और शायद मौत की अंतिम घङी में
ईसी की आश में
हमेशा के लिए सो जाऊँगी
और सो जायेगे
मेरे योगदान,पल,तनहाई
लाचारपन
फिर दबी रह जायेगी
मेरी आवाज़,मेरे दर्द....
-ठाकुर दीपक सिंह कवि
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