-ठाकुर दीपक सिँह 'कवि'
विचारोँ के तुफान मे यूँ ही
सिहर उठती हैँ कल्पनायेँ
कुछ दबी दबी बात है
कुछ अनसुनी सौगात है
खुद से पूछ लू मैँ
यह विचार सहज है
परन्तु सरल नहीँ
विचार से आशायेँ जुङी हैँ
और आशाओँ से कल्पनायेँ
परन्तु एक होकर भी ये
भिन्न है अलग है
विचार एवँ कल्पनायेँ
यह विषय कुछ उलझाता है
कुछ समझ मेँ आता है
और कुछ खुद मेँ ही सिमट जाता है विचार मानव का मनोविग्यान!
या विचार मानव ह्रदय की सन्तान
यह सवाल मेरे जेहन मेँ
यूँ ही चला आता है
आसान भी लगता है
परन्तु कल्पना से
कुछ दूर रह जाता है
हमारे विचार कल्पना से सम्बद्ध
हो सकते है
परन्तु कल्पना से विचार
परिवर्तनहीन है
क्योँकि कोई कल्पना वास्तव मेँ
एक विचार हो
सम्भव नहीँ है
असम्भव भी नहीँ है
हम कुछ करना चाहते है
-यह कल्पना है
हमेँ कुछ करना चाहिए
-यह विचार है
कल्पना एवं विचार
दोनोँ एक सिक्के के दो पहलू है
जिसे तिरछा देखा जाय तो एक है
परन्तु सीधा देखा जाय तो बस एक है
-कल्पना या विचार
यह प्रश्न मेरे ह्रदय को
ज्वलंत कर देता है
अतः यह प्रश्न
मैँ पाठकोँ के लिए छोङता हूँ
विचार जारी है
यह मेरी कल्पना हैँ
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