पैदा हुई तो
माँ-बाप के घर
मातम की बारात आई
थोड़ी बड़ी हुई तो
परिवार जनों के चेहरे पर
शादी की चिंता छाई
पग-पग पर
लड़के-लड़कियों में
हजारों भेद-भाव पाई
जगा कठोर आत्मविश्वास
बाधाओं से की
मैंने अटूट लड़ाई
करते-करते संघर्ष
उच्च शिक्षा हेतु
कॉलेज में मैं आई
कठोर परिश्रम से
दे सबको पटखनी
कॉलेज में मैं छाई
संकीर्ण पुरुषवादी समाज में
मेरी सफलता
किसी को रास ना आई
देख मेरा बढ़ा कद
जन-जन के चेहरे पर
घोर मायूशी छाई
खातिर मेरी शालीनता और सुन्दरता
छोड़ पढाई
लड़कों ने कामुकता जगाई
मिटाने को हवस
सबने आगे बढ़कर
मेरे साथ बात चलाई
देख पुरुष प्रधान समाज की
गिरती मानसिकता
मैंने दुत्कार लगाई
सुधरने की वजह
जगा अहम को
तेज़ाब की बोतल
मेरे चेहरे पर गिराई
और में आज की
सोनाली मुखर्जी बनाई
पुछती हूँ मैं
हे अल्लाह, ईश्वर,
गोड, मानव, महामानव,
क्या मैं इसी के लिए
इस दुनिया मैं आई
ठाकुर सुदेश कुमार रौनी
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