जहाँ सोचा था
वहाँ पहुँच सका ना मैं
वक्त से पहले
भटक गया था मैं
मोहब्बत के तूफां में
जो बह गया था मैं।
मोहब्बत की पीर
समझ सका ना मैं
तफरी-तफरी में
मोहब्बत की खीर
खा गया था मैं
मोहब्बत के तूफां -----
दुनिया हार गई थी समझा
सीमा से पार
बढ़ गया था मैं
हर बात अच्छी लगती थी
उस हया की
बातों ही बातों में
भविष्य भूल गया था मैं
मोहब्बत के तूफां -----
दिल में कुछ और था उसके
कुछ और ही
समझ गया था मैं
बिन बात
राह ताँकता था मैं
मोहब्बत के तुफां -----
ठाकुर सुदेश कुमार रौनीजा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY