/ मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित //
लघुकथा:
// सुरक्षित कौन ? //
जैसे ही उसने खिड़की से झाँककर देखा, उसे एक क्रीम कलर की कार दिखी। एक लम्बा-चौड़ा शख्स कार से उतरा। उसने तुरंत पहचान लिया। वह तो बड़े दाऊ का छोटा बेटा था- सुरेश। मोहला गाँव का एक बदनाम शख्स- सुरेश दाऊ। इधर-उधर देखते हुए, सब से नजरें चुराते हुए वह एक बड़े से, लम्बी छत वाले मकान में घुसा।
एक घंटे बाद सुरेश दाऊ एक कमरे से लड़खड़ाते कदमों से बाहर निकला। बोला- "भुनेश्वरी ! तुमने अच्छा किया यहाँ आकर। शायद तुम बहुत खुश हो। तुम्हें आसपास के सभी लोग जानते हैं। इस शहर में तुम्हारा बहुत नाम है। तुम्हारे पास पैसा है; शोहरत है। इतनी बड़ी बिल्डिंग में रहती हो। सब कुछ तो है तुम्हारे पास। तुम्हें और क्या चाहिए ? आखिर तुम्हारी जवानी और खूबसूरती काम आई। सबसे बड़ी बात यह है कि तुम यहाँ बिल्कुल सुरक्षित हो। तुम कहीं और इतनी सुरक्षित नहीं रह सकती हो।" बड़ी मुश्किल से शर्ट की बटन लगा कर कॉलर सीधा करते हुए सुरेश दाऊ दरवाजे के बाहर आया।
साला ! कमीना ! कुत्ता ! मैं यहाँ कैसे; और क्या सुरक्षित हूँ ? तुम्हारे कारण ही मैं यहाँ तक आई। मैं यहाँ सुरक्षित नहीं हूँ; बल्कि मेरे ही कारण तुमसे तुम्हारी माँ, तुम्हारी बहन और तुम्हारी बेटी सुरक्षित है।" हाँफती हुई भुनेश्वरी ने आँखों में आँसू लिये फटाक से दरवाजा बंद कर लिया।
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टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"
घोटिया-बालोद (छत्तीसगढ़)
सम्पर्क : 9753269282.
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