Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बदलती फ़ितरत है इन शब्दों की

 

बदलती फ़ितरत है इन शब्दों की,,
गर्व से निकले तो अह्न्कार,
मन से निकले तो ममता का आकार ,,,
शब्दों से ही तो बयां करे हम प्यार,
शब्द समझ आये तो बने समझदार,
ना समझ आये तो बने बेकार
शब्द ही करें तीर की तरह वार,
शब्दों पर ही तो करे हम विचार,
शब्द ही तो बतलाये हम कितने है आभार,,
शब्द ही तो झलकाये बेबसी ओर लाचार,
शब्द से ही बने रिश्ते चार,,,
शब्द ही बतलाये मन का विश्वास
पर जब कुछ छू ले मन को
तब क्यूं रहे ये शब्द चुपचाप??????
समझो शब्दों को ओर कह दो जो मन मे है आज
बहते तो है आंसू मन मे रखो या कह दो हर बात.,.,.,

 

 

तोशा

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ