कर्म क्षेत्र का प्रवेश द्वार
चक्रव्यूह सात फेरों का
प्रथम द्वार ले हाथों में हाथ
जिंदगी भर का साथ
बढे कदम भविष्य की और
निस्छल निष्कपट निस्वार्थ
राग पराग अनुराग हो असीम
अर्चि अंकुर तेरे जीवन का
विष्णु (रमेश) गीता की छाया
है जीवन की सफल धार
अभी और भी है द्वार
ढूढों वह सफल जीवन का द्वार
यही है जिंदगी कि पहली पहेली
हल करो और पाओ अपने बुजुर्गों से ईनाम
विषधर करता अभिनन्दन
प्रदक्षिणा सुदक्षिणा और अमृत (सुधा) के साथ
अर्ची रहना अर्पित समर्पित
और कदम बढ़ना अंकुर के साथ
त्रिलोक चन्द्र जोशी 'विषधर'
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