Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रिमझिम रिमझिम बरसता पानी

 

रिमझिम रिमझिम बरसता पानी
आओ दादी आओ नानी
जब पानी में बहती नाव
उसमें देखो बच्चों के भाव
ठुमुक ठुमुक बहती नाव
राग एक नया सुनाती नाव
बरखा ने अपना स्वभाव बदला
उसके विकराल रूप से दिल दहला
बहे खेत और खलियान
नहीं बक्शे पहाड़ और मकान
ताली बजाकर बच्चे चिल्लाते
मेरी नाव सबसे आगे
कितने ये नादान
ये समझते मातम को भी अपनी शान
सोने जैसा है साफ दिल इनका
इनके दिल में कोई दाग़ न दिखता
इनके लिए बरसता पानी केवल है रिमझिम पानी
चाहे वो लिखे उनके जीवन में मातम की एक कहानी
'विषधर' कहता अब पछताने से होता क्या
तब कहते थे पेड कटाने से होता क्या
और अब कहते हो वृक्षारोपण से होता क्या
अरे अब तो होश में आ ऐ निर्बुधि इन्सान
अगर चाहत है बनाना महान
जीवन में एक वृक्ष कर दान

 

 

 

त्रिलोक चन्द्र जोशी 'विषधर'

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ