उनका ये सोचना की वो जो भी करते है अच्छा करते हैं
वर्ना खुशी में भी आखों से आंसूं क्यों बरसते
अमीरजादे क्यों शांति और खुशी के लिए यों तरसते
क्यों बहकते यों गफलत कि
वो जो भी करते है अच्छा करते हैं
क्यों वो शीशे का अक्ष अपने में देखते
क्यों देवता अमृत के लिए करते समुद्र मंथन
मुक्ति के लिए रावण करता सीता का हरण
वासुदेवकी को क्यों होती जेल
अरे "विषधर" कहता यही है जिन्दगी का खेल
वर्ना कैलाश का वासी क्यों करता तांडव
क्यों बहकते हो यों गफलत कि
वो जो भी करते है अच्छा करते हैं
त्रिलोक चन्द्र जोशी 'विषधर'
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