उत्तराखंड के एक बंद मकान की व्यथा जिसका मालिक सालों पहले प्रवासी हो गया है वह इंतजार कर रहा है की कब उसका मालिक आयेगा ?
इंतजार है बंद दरवाजों को खुलने का
निरीह बेजान एवं बेजुबान
दे रहा एकही सन्देश
कोई तो आयेगा मुझे समझेगा
और आज़ाद करेगा मुझे सदा के लिए
इसी लिए
मैं
सह रहा है समय कि मार
फिर भी वोही इंतजार
अब तो आजाओ मेरे यार
आँगन में अभी भी मिलेगी
वोही बचपन की मस्ती
शायद न मिले वो यार
क्योकि उनके दरवाजे भी
मेरी तरह कर रहे हैं इंतजार
में करूंगा इंतजार अनंत का अनंत तक
आजो घर वापिस मेरी यह पुकार
गूँज रही मेरी बेजुबान आवाज़
कोई तो सुनेगा
ये है म्योर पहाड़
द्वारा त्रिलोक चन्द्र जोशी
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