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Dr. Srimati Tara Singh
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बचपन

 

कितना प्यारा होता बचपन होता सबसे सच्चा है
हम चाहे कितने बढ जाएं फिर भी दिल तो बच्चा है
शरारते बचपन कि जब भी याद हमें आती है
उदास चेहरों पर भी मुस्कान छेड जाती है
टुटे खिलौने भी बचपन कि जागिर होती है
मिठी यादों में सिमटी बचपन की तस्वीर होती है
ना कोइ कल की चिन्ता ना तकलिफ होती है
भागमभाग भरे जीवन से बचपन ही अच्छा है
हम चाहे कितने बढ जाएं फिर भी दिल तो बच्चा है
कभी भागते पैसो के पिछे कभी भागते काम के हैं
दौड भाग सब यहां मचाते डर के मान अपमान से है
रूढीवादी बन जाते बनाते उंच निच की दिवार है
जिनकी जेबें होती गरम यहां घुमते वह षान से है
भरी पडी यह दुनियां एैसे दोगले लोगो से है
एैसी दुनियांदारी से तो बचपन ही अच्छा है
कितना प्यारा होता बचपन होता सबसे सच्चा है
एक पल में लडते झगडते दूजे पल मिल जाते है
नही कोइ जात पात नही कोइ और रिष्ते नाते है
बचपन ढूंढता है सिर्फ बचपन नही जानता रष्में वादे है
खेल बचपन के होते सब कुछ नही कोइ और इरादे है
बस मासुमियत ही तो बचपन की बुनियादे है
भोलेपन और मासुमियत से बचपन कितना सच्चा है
हम चाहे कितने बढ जाएं फिर भी दिल तो बच्चा है
कितना प्यारा होता बचपन होता सबसे सच्चा है
हम चाहे कितने बढ जाएं फिर भी दिल तो बच्चा है

 

 

 

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