Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाँद

 

पुरा दुख और आधा चांद
नभ की शब और ऐसा चांद


दिन में वह्शत बदल गयी थी
रात हुई और निकला चांद


जाने किस हालात से गुजरा होगा
ईतना सहमा सहमा चांद


यादों की आबाद गली में
घुम रहा है तन्हा चांद


मेरे मुख को किस हैरत से
देख रहा है भोला चांद


ईतने घने बादल के पिदे
कितना तन्हा होगा चांद


मेरी करवट पर जाग उठे
निंद का कितना कच्चा चांद


आंसू रोके नूर बहाए
दिल दरिया जन सहरा चांद


सुबह होते हि रूखसत होगा
उसकी सुरत नभ का चांद


सहरा सहरा भटक रहा है
अपने पथ मे सच्चा चांद


रात को शायद आसमान में
सोता न होगा प्यारा चांद

 

 

तृप्ति टांक

 

 

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