जीवन ही मृत्यु है मृत्यु ही है जीवन
चलते चते पल भर मे यूं
हि बित जाता है जीवन
देह छोड जाती आत्मा
है टूट जाते सारे बंधन
अपने पराए साथ छोड देते है
साथ कोई जाता नही
कर्मो की गठरी सिर पर ढोए
अकेला चलता जाता जीवन
मुट्रठी बांधे आया जग में
हाथ पसारे है जाता
सारा जीवन होता सामने
जैसे रखा हो जीवन दर्पण
जब जीवित है जीता है
वह अपने अहंकार में
मुक्त होने पर राख बन जाता
है कर दिया जाता दहन
रिष्तो नातो के बिच मे
उलझ कर रह जाता है जिवन
जीवन मुक्ति है मानो
सारी समस्याओं की सुलझन
एक देह को छोडकर जीव
चला जाता है दुजे देह में
नियम है यह प्रकृति का
होते रहते है परिवर्तन
मृत्यु हि तो परम सत्य है
पर डरता है जीव इससे
जीवन हि तो मृत्यु है मृत्यु हि है जीवन
तृप्ति टांक
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