Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं मुझसे खफा हूँ

 

मैं मुझसे खफा हूँ
करना चाहती जिंदगी में मैं मुझसे वफा हूँ
पर जाने क्यों कैसे जिंदगी में आज मैं मुझसे खफा हूँ
कभी बसा करते थे सपने कई सारे आंखो में
कई सारी इच्छाएं थी थी खुषियां सारे जमाने की
रोज हंसती मुस्कुराती सुबह होती चैन से होती थी षाम
पर अब अपनी ही जिंदगी से मैं गुमषुदा हुं
जाने क्यों कैसे जिंदगी मे आज मैं आज मैं मुझसे खफा हूँ
जिंदगी मेरी ऐसी थी जैरे बगीया का कोइ फुल
क्यों ऐसी हो गइ जैसे राह मे पडे हो शूल
उस वक्त जो दुनियां थी नगती थी बहुत सुहानी
जिंदगी मे पहली बार मैने दुनिया की असलियत पहचानी
तोडा भ्रम दुनिया ने मेरा करती इसका ष्षुक्रिया अदा हूँ
जाने क्यों कैसेे जिंदगी मे आज मै मुझसे खफा हूँ
जीवन मे अपना मानकर करते हैं विष्वास जिन पर
देते है वे अक्सर दगा मुसिबत मे हमें वक्त पर
इंसानियत का चोला पहने करते दिखावा अपनेपन का
कभी कभी क्यों नही पहचान पाती मै चेहरा ऐसे दोगलेपन का
पराए अपने हो जाते है अपनो से पाती मै अक्सर दगा हूँ
जाने क्यों कैसे जिंदगी मे आज मै मुझसे खफा हूँ
ये दुनियां कितनी मतलबी है है कितनी ये स्वार्थी
टपने मतलब के लिये उठवा देती है किसी की भी अर्थी
ऐसी बुरी दुनियां तो न रची होगी परमात्मा ने
इतने भी बुरे कर्म न किये होंगे मेरी आत्मा ने
न चाहते हुए भी क्यों हो जाती मै खुद जिंदगी से बेवफा हूँ
जाने क्यों कैसे जिंदगी मे आज मै मुझसे खफा हूँ
क्यों पूरा होते होते टूट जाता है हर सपना मेरा
क्या यूं ही अंधेरों में जिते जिते रह जाएगा जीवन अधूरा
क्या इतनी बडी दुनिया मे कोइ नही जो गुमनामी से निकाल सके
क्या कोइ नही जो मुझे मेरे सवालों का जवाब दे सके
क्यों भीड मे होते हुए भी मै अकेलेपन मे ही जिंदा हूँ
जाने क्यो कैसे जिंदगी मे आज मै मुझसे खफा हूँ
जाने क्यों कैसे जिंदगी मे आज मै मुझसे खफा हूँ
कभी जिंदगी मुझसे तो कभी मै जिंदगी से खफा हूँ
जाने क्यों कैसे जिंदगी मे आज मै मुझसे खफा हूँ

 

 


तृप्ति टांक

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