Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यात्रा जीवन की

 

इस जग में होती है एक गाडी
करता है जिस पर मानव अपने जीवन की यात्रा
पहले स्टेषन गर्भ से छुटती है गाडी
चली जाती है चीता तक जो है अतिंम स्टेषन यात्रा का
समय बितता जाता पल पल चलती जाती है गाडी
राह पे है कइ मुसाफिर मिलते और बिछडते है
सबको अपनी मंजिल तक पहुंचाती है गाडी
जीवन की इस गाडी में खुशी और गम है दो पहिए
कभी हंसाती कभी रुलाती चलती जाती है गाडी
राह में बन जाता कोइ अपना है रह जाता कोइ बेगाना
हर किसी को एके साथ लेकर चलती है गाडी
रीति रिवाजों परंपराओं के है इसके रास्ते
जात पात के मोड से होकर चलती है गाडी
संस्कार दया मानवताऔर सदाचार है इसके डब्बे
विनम्रता के द्वार खोले चलती जाती है गाडी
छोटे बडे हो या अच्छे बुरे हर कोइ चढता है इस पर
ळर किसी को जीवन की यात्रा कराती है गाडी
सहानुभूती और अहसास लेकर चलते है सब
हर किसी से कोइ ना कोइ रिष्ता बनाती है गाडी
सारे रिष्तो से बढकर इसमें रिष्ता है इंसानियत का
एक दुसरे को सुख दुख में षामिल करती है गाडी
हर पल हर लम्हे में साथ साथ हाते है सभी
कभी हंसाती कभी रुलाती चलती जीती है गाडी

 

 

 

तृप्ति टैंक

 

 

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