Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अनुभव विवाह का

 

विवाह मेरे जीवन का वो एक खास ऐहसास है जिसकी सोच मेरे विवाह से पहले कुछ और बाद मे कुछ और समझ आई।
दर असल हम छोटे से ही ये देखते हुऐ बङे हुए है की कैसे दो अनजान लोग एक अटूट बंधन मे बंधते है और फिर वहाँ से शुरु होता है एक प्यारा सा सफर।
पहले ये सब बहुत आसान लगता था कि मा और पिताजी आपस मे कितना प्यार और विश्वास रखते है और अपनी जिन्दगी मे बहुत खुश है।
मै अकसर यही सोचती थी कि मै भी बङी होके अपनी मा की तरह एक बहुत अच्छी पत्नी और एक अच्छी मा बनुगी, पर ये इतना आसान न था।
विवाह का अथ्र् केवल यही नही होता है बल्कि इस से कुछ और आगे होता है, मुझे इसका सही मतलब समझने मे कुछ वक्त जरुर लगा ।
विवाह की यात्रा चारधाम की यात्रा से कम नहीं होती है , शुरुआती सफर मे सामंज्सय बनाने मे कुछ दिक्कतों का सामना जरुर करना पङता है पर तालमेल बैठते ही उतना ही आसान दिखाई देता है, क्योकि हम पहले के अनुभवों से अवगत हो जाते है कि आगे मार्ग मे हमें कैसी दिक्कत आ सकती है।
हम जैसे ही एक नये परिवार मे कदम रखते है मानो सबकी निगाहें केवल आपको ही देख रही है कि आप कैसे बोलती है कैसे चलती है कैसे हँसती है और कैसा व्यवहार है जैसे आप कोई परीक्षा पास करने आइ हो।आपके इस परिवार मे भी सामान्यतः होते सभी है पर आपके लिए बिल्कुल नए।
मैने अपनी शादी अपनी पसन्द से की थी और मै भी इन सारे अनुभवों से गुजरी हु , उस वक्त मुझे ये लगता था की जीवन का इतना सुखद रिश्ता इन राहो से होके गुजरता है।
आज मुझे पता चलता है कि मम्मी पापा ने कैसे अपने दुखो को छुपा के हमें इतना अच्छा जीवन दिया और ये ऐसे ही नही हुआ बल्कि वो दोनों एक थे हर सुख मे हर दुख मे।किसी ने ये नही जताया कि किसकी जिम्मेदारी ज्यादा है या कम, कौन लापरवाही कर रहा है और कौन संभाल रहा है अपितु आगे कैसे मिल के सुझबुझ से चलना है ये अहम मुद्दा सोचते थे।
किन्तु आज का समाज कुछ और ही भाषा बताता है।शादी आज एक दिखावा बनके रह गई है, शादी कहाँ होगी कौन कौन आएगा क्या क्या खरीदेगे लङका लङकी सुन्दर तो है वगैरह वगैरह।आज एक शादी निभाना कई गुना अधिक मुश्किल हो गया है।यहाँ ज्यादा वक्त कंमिया निकालने मे लगता है ।एक से बढकर एक उम्मीदे हम अपने जीवनसाथी से करने लगे है, हम शादी का असल मतलब भुलते जा रहे है।
ये एक ऐसा रिश्ता है जहाँ एक लङकी अपने परिवार का त्याग करके अपने पति के परिवार मे आती है, सदियों से चलती आ रही ये प्रथा आजकल एक अलग ही अदांज से चल रही है।किसी ने कुछ किया या ना किया बस वो शादी टूटने के कगार पे ही रहती है।खून के रिश्ते की ही तरह शादी भी एक अटूट रिश्ता होता है जिसमें हमें सदा इसे निखारने का ही विकल्प लेना चाहिए।
ये तो हम सब जानते है कि बेटी घर की आन होती है और बहु घर की शान तो क्यो ना हम ये उत्तरदायित्य को दिल से निभाए।वहीं दूसरी ओर यदि पुरुष अपनी पत्नि को अपनी शान समझकर साथ रहे तो विवाह का अर्थ सार्थक हो जाए।
एक लङकी के घर मे आते ही या तो वो घर टूटता है या सवंअरता है , ऐसी महा शक्ति वाली नारी का यदि घर मे सदैव सम्मान किया जाए तो इस पावन रिश्ते का भविष्य अन्ततः उज्जवल रहे।
मेरी शादी को 6 वर्ष हो गये है और इस रिश्ते के मायने को जानते हुए जीवन भर दिल और दिमाग से इस रिश्ते को जीना है।अभी ये सफर इतना अच्छा लगता है यदि इसे गहराई से समझा जाए तो जीवन आसान हो जाए, पर आजकल आसानी से मिली चीजों का कोई महत्व नहीं ।
जरा सोचिए और विवाह के रिश्ते को जी के देखिए ।

 

 

 

तृष्णा राय

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