Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जागो पतिवर जागो

 

मेरे पति मेरे परमेश्वर तुम कितने रगं दिखाते हो, एक भोला सा एक टेढा सा
हर रगं मे फिट हो जाते हो।
भूल गए वो शादी के दिन बढ चढ कर
सात वचन दिए,याद ना आए एक वचन भी निभाने को जब दिए गए।
तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की मै कामना
हर पल करती हुँ, कुछ पल भी अहसास तुम्हें है ,जो अकेले मे मै आहे भरती हुँ।
शादी क्या सिर्फ मैनै की है हर वक्त निभाती रहती हुँ, तुम्हारे घर के हर सदस्य को अपना बना के चलती हुँ।
छोटी थी तो पापा कहते मम्मी भइया का तुम ध्यान रखो, शादी होते ही ये सिखाया
पति और पति घर का सम्मान करो।
कुछ पल जब कभी मेरे मन मे ख्याल बङा सा आता है, कुछ सवाल उमर के आते है,
कभी मुझको भी ये सारी खुशियाँ बिन शर्तो के मिल जाती, अपना घर कौन सा है ये बात समझ मे आ जाती ।
मम्मी पापा का घर पराया ऐसा कहा जाता है, पति के घर मे शुरू शुरू मे अहसास दिलाया जाता है ।
ऐसे करना वैसे रहना ये बात बता दी जाती है, शर्तो के आधार पे जीना किस्मत मेरी क्यों बन जाती है।
मुझको भी जीने का हक है ये मेरी आशा किसे समझ मे आएगी, गलती कैसी भी हो हर हाल मे मुझ से गुजर के जाएगी।
किस अपने को फरियाद करु मै मुझको भी खुश रहने दो बहुत हुआ अब रोब जमाना मुझको भी दिल से जीने दो।
ये सारी बातें हरदम हम ही क्यो अम्ल करें,
तुम तो आके ये कह दे प्रियवर तुम करो जो तुम्हारा दिल करे, इसी आस से मै कहती हुँ रौनक होगा अपना जहाँ पर साथ कोई देगा ऐसा मेरा नसीब कहाँ।

 

 

 

तृष्णा राय

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