सोच का सफर / Soch ka safar
दिखते है जल्दबाजी में पहुचना है उन्हें हर रोज कही,
कुछ के पास आज काम कम है करेंगे कुछ अधूरा सही,
कुछ मंशा लेकर निकलते छोड़कर घर होती जब सहर,
इंसान नही जैसे सोच उसकी निकलती हो करने सफर।
मिला जो काफी वक्त के बाद निकले है अपनाने वो अवसर,
ज्यादा हो किसी के पास उनमे से चुनते है सिर्फ एक बेहतर,
सोच में ही होता चुनाव करते है तय कुछ पड़ावों की सतर,
इंसान नही जैसे सोच उसकी निकलती हो करने सफर।
निकला है कोई अपनो से तो कोई अंजान से करेगा मुलाकात,
लेन देन होगी विचारों की करेंगे बया मौजूदा हालात,
कुछ नया खोजना चाहता मन सारा पुराना लगता उसे दुष्कर,
इंसान नही जैसे सोच उसकी निकलती हो करने सफर।
नही करते सफर सिर्फ सुखद कारणों से है ऐसी हमारी दुनिया,
महत्वपूर्ण है उपस्थिति हमारी चल रही जब तक गतिविधियाँ,
किन लम्हो को छुपाये है वक़्त की रेत जा रही समझ ने में उमर,
इंसान नही जैसे सोच उसकी निकलती हो करने सफर |
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