Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा

 

बरसों के बाद देखा
एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है
क्या नाम था भला सा
तेवर खींचे खींचे से
आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी
लहजा थका थका सा
अलफ़ाज़ थे के जुगनू
आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में
नहरों का रास्ता सा
ख्वाबों में ख्वाब उस के
यादों में याद उसकी
नींदों में घुल गया हो
जैसे के रतजगा सा
पहले भी लोग आये
कितने ही ज़िन्दगी में
वो हर वजह से लेकिन
औरों से था जुदा सा
अगली मोहब्बतों ने
वो नामुरादियाँ दी
ताज़ा रफ़ाक़तों से
था दिल डरा डरा सा
तेवर थे बेरुखी के
अंदाज़ दोस्ती सा
वो अजनबी था लेकिन
लगता था आशना सा
कुछ यह के मुद्दतों से
मैं भी नहीं था रोया
कुछ ज़हर में बुझा था
अहबाब का दिलासा
फिर यूँ हुआ के सावन
आँखों में आ बसा था
फिर यूँ हुआ के जैसे
दिल भी था आबला सा
अब सच कहूँ तो यारों
'निर्जन' खबर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत
एक वाकेया ज़रा सा
बरसों के बाद देखा
एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है
क्या नाम था भला सा...

 

 

--- तुषार राज रस्तोगी ---

 

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