Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एकाकी

 

एकाकी जीवन है
मेरा
पर्वत तेरे जैसा
कभी लगे
झरने तेरे जैसा
कभी लगे
बादल तेरे जैसा
उमड़ घुमड़ कर
दुःख आते हैं
मन को दुःख दे
छल जाते हैं
कभी अंतः
सुख बरसाते हैं
दिल कहता है
दुःख नहीं चाहियें
अंतः कहता
सुख नहीं चाहियें
अंतः
मन दोनों एकाकी है
जीवन
तन दोनों एकाकी है
तब मैं भी तो
एकाकी हूँ
जीवन डोर
प्रभु को सौंपी
मन, अंतः को
दिया भुलाय
बादल तुझसे
झरने तुझसे
अपना जीवन
लिया मिलाय
बहते रहना
बरसते नयना को
अब लिया है
अपनाय...

 


---तुषार राज रस्तोगी ---

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