अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं
दुःख की संयोजना का
कोई पंथ नहीं
जो मेरा है
वो मेरा सर नहीं
जिसमें जीवित हूँ
वो मेरा संसार नहीं
रक्त रंजित अधर हैं
फिर भी मैं गा रहा हूँ
रुधिर बहते नयन हैं
फिर भी मुस्करा रहा हूँ
व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ
आक्रोश हूँ पर मौन हूँ
सत्य सह मैं
सत्य पर मिथ्या रहा हूँ
अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं अब
'निर्जन' जो होता है
अभिव्यक्त समक्ष वो
सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ
---तुषार राज रस्तोगी---
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY