Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अपना कहते मुझे हजारों में

 

 

apnakehte


जो वफ़ा होती खून के रिश्तों में बाक़ी
तो जज़्बात क्यों बिकते बाज़ारों में

 

जो हर कोई देता साथ ज़मानें में अपना
तो तनहा चांद ना होता सितारों में

 

जो हर गुल की ख़ुशबू लुभाती दिल को
तो गुलाब ख़ास ना होता बहारों में

 

जो मिले मौक़ा तुरंत नज़र बदलते हैं
तो बात है ख़ास खुदगर्ज़ यारों में

 

बख़ुदा 'निर्जन' भी ख़ुशक़िस्मत होता
जो वो अपना कहते मुझे हजारों में

 

 

--- तुषार राज रस्तोगी ---

 

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