जो वफ़ा होती खून के रिश्तों में बाक़ी
तो जज़्बात क्यों बिकते बाज़ारों में
जो हर कोई देता साथ ज़मानें में अपना
तो तनहा चांद ना होता सितारों में
जो हर गुल की ख़ुशबू लुभाती दिल को
तो गुलाब ख़ास ना होता बहारों में
जो मिले मौक़ा तुरंत नज़र बदलते हैं
तो बात है ख़ास खुदगर्ज़ यारों में
बख़ुदा 'निर्जन' भी ख़ुशक़िस्मत होता
जो वो अपना कहते मुझे हजारों में
--- तुषार राज रस्तोगी ---
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