दुनिया बदल रही है
ज़माना बदल रहा है
इंसानी फितरत का
फ़साना बदल रहा है
भूख बदल रही है
भोजन बदल रहा है
विकृत हाथों का
निशाना बदल रहा है
आचार बदल रहा है
विचार बदल रहा है
भेड़िये दरिंदों सा
किरदार बदल रहा है
सलीका बदल रहा है
तरीका बदल रहा है
विकृत यौनइच्छा का
पैमाना बदल रहा है
बीवी बदल रहा है
बेटी बदल रहा है
हैवानी हदों का
जुर्माना बदल रहा है
दिल्ली बदल रही है
दिल वाला बदल रहा है
वीभत्स कुकृत्यों से
दिल्लीनामा बदल रहा है
लिखना बदल रहा है
सुनाना बदल रहा है
'निर्जन' फरमाने को
अफसाना बदल रहा है
ऐ मुर्दों अब तो जागो
कब्रों से उठ के आओ
अब सोते रहने का
मौसम बदल रहा है
--- तुषार राज रस्तोगी ---
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