लो फ़िर से आया कहने को स्वतंत्रता दिवस
पर मैं हूँ अड़ियल इसे ना मानने को विवश
क्या सच में अपना देश हो गया आज़ाद है?
फ़िर क्यों खत्म नहीं होता सेक्युलरवाद है
कल पकिस्तान, बांग्लादेश काटा था आज तेलंगाना है
तरीका वही है बटवारा कर देश को बेच खाना है
आज़ादी का मोल यहाँ कुछ लोग क्या ख़ूब चुकाते हैं
गरिमा हिंदुस्तान के झंडे की जूतों में रौंदते जाते हैं
काश्मीर की आग़ में मुल्क को भड़काना और जलना है
सेक्युलरवाद के चूल्हे पर राजनैतिक मंसूबा पकाना है
करते हैं तार-तार अस्मत आतंकी भारत माता की यहाँ
वो पीटते हैं डंका ईमानदारी-भाईचारे का बैठकर वहाँ
सामने आकर जो भाई कहकर गले से लगते हैं
ख़ंजर लिए आस्तीन में वही पीछे से वार करते हैं
वो जो बनाते हैं आपसे बातें मीठी कई-कई-कई
दिल-दिमाग-सोच से होते हैं सच में शातिर लोग वही
जहाँ देश को बेचने वाला ही आज देश पे राज करता है
वहाँ देशभक्त कोख़ का जाया बेमौत सूली पर चढ़ता है
आतंक और घोटालों में बढ़ गया है देश बहुत आगे
वाह..! देखो तो लोगों के इमां सच में हैं कितने जागे
फ़र्ज़ी, दोगले, भ्रष्ट, धूर्त, पाखंडी खच्चर ज़ाफ़रान उड़ा रहे हैं
देशभक्त, इमां वाले, उसूल पसंद घोड़े सूखी घास चबा रहे हैं
नक़ाबपोश, मतलबपरस्त, झूठा हर एक शख्स दिखता है यहाँ
कभी सच की मूरत, न्याय पसंद महाराजा हरिश्चन्द्र जन्मे थे जहाँ
बे-ईमानी, बहसखोरी, लड़ने, भिड़ने को हर एक आमादा है
गोया चुनाचे सच को सच मान लेने में किसी का क्या जाता है
क़ानूनी शिकंजे में जकड़ा कोई मासूम भूख-प्यास से मरा जा रहा है
वहीं एक नापाक आतंकी यहाँ दामाद बनकर पकवान उड़ा रहा है
आज लहू सबका बदरंग, सफ़ेद, ठंडा, मिलावटी हो गया है
देशभक्ति वाला वो जज्बा अब तक़रीबन खत्म ही हो गया है
क्या ऐसी प्रगति की रफ़्तार ही उम्दा मिसाल देती है?
जो भी हो भारत माँ तो आज भी फटेहाल ही रहती है
अपनी खुदगर्ज़ी की कब्र में हर एक बाशिंदा चैन से सो गया है
लो सुनो अभी भी वो कहते हैं 'निर्जन' भारत स्वतंत्र हो गया है
तुषार राज रस्तोगी
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