Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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डर लगता है

 

दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

 

लूटेरे हर जगह फिरते मुंडेरों पे, शाख़ो पे
बना कर भेस अपनों सा लपकते हैं लाखों पे

 

न लो रिस्क तुम बच के ही रहना दरिंदो से
दिखने में कबूतर हैं ये गिद्ध रुपी परिंदों से

 

भूलकर भी मत सुखाना अस्मत को तार पर
मंडराते फिरते है रक्तपिपासु वैम्पायर रातभर

 

इज़्ज़त तार कर देंगे तार पर देख अस्मत को
वापस फिर न आती लौट कर गई शुचिता जो

 

संभालो पवित्रता अपनी खुद अब दोनों हाथों से
खत्म कर दो हैवानो को जीवन की बारातों से

 

चलाओ बत्तीस बोर कर दो छेद इतने तुम इनमें
मरें जाके नाले में इंसानियत बची नहीं जिनमें

 

दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

 

 

--- तुषार राज रस्तोगी ---

 

 

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