साथ जिसके सजाये थे ख्व़ाब कितने
अब मिलता है वो सिर्फ़ ख़्वाबों में
आहट से जिसकी मचल उठता था दिल
अब सुनाई देता है वो सिर्फ़ आहटों में
साथ बिताये थे जिसके हसीन पल कई
अब गुज़रते हैं बन याद वो रातों में
बातें साथ करते थे जिसके बेहिसाब
अब रह गया है हिसाब सिर्फ यादों में
राहों से चुने थे जिसकी ख़ार हमने
छोड़ गया है वो 'निर्जन' अब काँटों में
चाहत में जिसकी हो रही है ये गुफ़्तगू
वो शख्स मिलेगा अब सिर्फ चाहतों में
--- तुषार राज रस्तोगी ---
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