Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इंतज़ार उसका मुझे

 

वो कहते हैं इश्क नहीं
होता पहली नज़र में
मैंने जिस से भी किया
आज भी निभा रहा हूँ

 

सुलगते जो दिल में
जज़्बात रहते हैं मेरे
आज लिखकर उन्हें
दिलसे बतला रहा हूँ

 

वो आया था नज़रों में
फिर दिल को भा गया
एक निगाह डाल कर
मुझे अपना बना गया

 

रंग ऐसा चढ़ा उसका
छुड़ाए छुट न सका
बाद मुददतों के भी
नाम मिट न सका

 

पतंगा बन कर रहा
आग में जलता रहा
बरसों 'निर्जन' यूँ ही
बस पिघलता रहा

 

इंतज़ार उसका मुझे
आज भी है ऐ दोस्त
इश्क को जो मेरे
उम्रभर परखता रहा

 

 

--- तुषार राज रस्तोगी ---

 

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