हे प्रभु! आपने तो
बचपन से ही
कर्म को प्रधानता दी
फिर यह मध्यकाल
आते-आते अकमणयता
को क्यों बाँध लिया
अपने सर का
सेहरा बना कर,
बनाकर एक
अकमणयता की सेज
तुम्हारी ये निद्रा
तुम्हारे ही लिए नहीं
समस्त जन को
पीड़ा की सेज देगी
बैठा कर स्वजनों को
काँटों की सेज पर
पहना कर काँटों के
ताज को तुम ईशु
नहीं कहलाओगे
कहलाओगे सैय्याद
तुम अपनी निद्रा त्यागो
तुम कर्म की वो राह चुनो
जो पीडित स्वजनों को
रहत दे ऐसी राहत
जिसे सुनकर
मृत भी जी उठे
--- तुषार राज रस्तोगी ---
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