आज एक
मूक घुंघरू भी
कह उठा
मैं, मूक नहीं हूँ
वो कहता है
मेरा स्वर
प्रत्येक व्यक्ति के
लिए नहीं है
उस व्यक्ति के
लिए नहीं है
जो मुझे जानने की
इच्छा रखता है
जो मुक्ता का
स्वर जानता है
दर्द पहचानता है
उच्च स्वर का
यन्त्र अचानक
मौन कैसे हुआ
जिसने संसार को
अनेक स्वर दिए
पर, बदले में
मिला एक
दाग भरा नाम
फिर वो मूक हुआ
उसने अपनी शांति में
ईश्वर को सुना
बस अब तक तो
वो बजता था
तब, सब सुनते थे
पर आज
ईश्वर का स्वर स्वयं
बजना है
वो मूक बना
उस स्वर का
आनंद लेता है
इस लिए ईश्वर को
पाने वाला ही
उस घुंघरू की
ताल और लय
सुन पायेगा
--- तुषार राज रस्तोगी ---
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