भाग्य नही जो प्याला बनता जिसको अधरों ने चूमा
जिस ठौर पड़ें अब पाँव तुम्हारे उसकी बस मिट्टी बन जाऊँ
आदि प्यार तेरा बन न सका इसका अफ़सोस नही मुझको
पर त्रष्णा यही पाल रखी है तेरा आखिरी आलिंगन पाऊँ
इसमें तेरा दोष नही है ऐसे कितने तुझपे मरते होंगे
तू नीलकमल सब थे सन्यासी जाने कितने ऐसे तपते होंगे
भाग्य नही खुद वैभव होगा जिसको तूने अपनाया
चाहूँ यही बनूँ वैसा ही और तेरा अपनापन पाऊँ
आदि प्यार तेरा बन न सका इसका अफ़सोस नही मुझको
पर त्रष्णा यही पाल रखी है तेरा आखिरी आलिंगन पाऊँ
भाव नही भव में बहता था खुद की नही पर सबकी सुनता था
मुझको तुझमें दुनियाँ दिखती थी तुझको जग में ही सब दिखता था
तूने प्यार चुना सरताज चुना पर ऐसी कोई अभिलाषा नही मुझको
मैं तो मीरा जैसा भक्त बनूँ और भक्ति योग से तुझको पाऊँ
आदि प्यार तेरा बन न सका इसका अफ़सोस नही मुझको
पर त्रष्णा यही पाल रखी है तेरा आखिरी आलिंगन पाऊँ
-“उदय राजपूत”
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