Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ओ मजनुओं सुन जरा

 

हम भी मजनू हैं, शीरीं हैं, फर्हाद हैं
टूटा हुआ दिल लिए भी आबाद हैं
डाॅक्टर क्या जानेगा
हमारी हालत मसखरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

अल्ट्रासाउंड, कार्डियोग्राम सब झूठ है
डाक्टरी में जान नहीं अब बहुत ही लूट है
वो तो निरा कंगाल है
जिसने दिल का बिल भरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

कोई मशीन नहीं जो दिल को दिखाए चूर-चूर
न कोई डाक्टर वली है इस इल्म का मशहूर
डाक्टरी में ये चैप्टर नहीं
कि बगैर 'जान' कैसे मरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

एक हमारी बेबसी उनसे हम मजबूर हैं
इश्क़ का कीड़ा लिए ग़मज़दा जरूर हैं
दवा वो हैं, दुआ वो हैं
वो साथ तो मन हराभरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

फोन नंबर बदलने का सिलसिला है चल पड़ा
बात करने को मगर दिल आज भी बेचैन बड़ा
वैले हैं बीमार दिलवाले
शायर होकर जो मरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

फेसबुक हो इंस्टाग्राम या गांव का पनेड़ी ठेठ हो
प्रेम की गाथा या टांका-फिट में वो न अपडेट हो
लानत है उसके जीके पर
ज्ञान उसका अधम निरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

ज़हर खा ले, दारू पी ले या मार सुट्टे का कश
डीपी अपटेड कर ले चाहे ब्लेड से काट के नस
काम आएगी यहां डाक्टरी
जब जोड़ेंगे नस का सिरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

अब सुन! प्रेम को क्या समझे वो अय्याश बेवफा
जिन्हें नहीं रिश्ते का शऊर, उनका ये फलसफा
क्यूं करें डाक्टर, पीर
या क्यूं कहलाएं सिरफिरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

दुखों का समंदर ले, फेसबुक अपडेट लिख
डायरी या शायरी या कविता का सेट लिख
एन्देम लिख, साॅनेट लिख
या बन जा रहीम-कबिरा
ओ मजनुओं सुन जरा!

 

 

-उदयेश रवि

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