Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विस्मृति

 
विस्मृति

सुनहरी सजीली भोर, सुहानी नहीं आई, 
तरुणों में उत्साह की, रवानी नहीं आई। 
नवयुवक को नभ देख रहा है आशा से, 
जिंदगी चलने लगी, जिंदगानी नहीं आई।। 

लिखनी तुम्हें अपनी, कहानी नहीं आई,
चादर प्रेम - स्नेह की, बिछानी नहीं आई ।
निसंदेह हुए हो सम्मुख, तुम इस वतन से,
आबरू तुम्हें वतन की, बचानी नहीं आई ।। 

हृदय की प्रबल अनल, जलानी नहीं आई,
सत्य चक्षुजल की धारा, बहानी नहीं आई ।
विस्मृत कर दिया, जनहित इस समाज से, 
जवान तो हो गए, पर जवानी नहीं आई ।। 

देशद्रोह की जड़ें, हिलानी नहीं आई, 
विद्रोह की चट्टानें, गिरानी नहीं आई ।
अविराम प्रवाहित, रक्त-धारा धरा से,
लुटना सीख गये, कुर्बानी नहीं आई।। 

उमेश पंसारी 
युवा समाजसेवी, नेतृत्वकर्ता और कॉमनवेल्थ स्वर्ण पुरस्कार विजेता 
Mo. 8878703926, 7999899308  
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लेखक परिचयलेखक उमेश पंसारी 20 वर्षीय विद्यार्थी, विश्व के अनेक देशों द्वारा समाज सेवा और लेखन के क्षेत्र में पुरस्कृत है | लन्दन का प्रतिष्ठित राष्ट्रमंडल स्वर्ण लेखन पुरस्कार तथा मध्यप्रदेश शासन द्वारा सर्वोच्च समाज सेवा पुरस्कार प्राप्त किया है |_______________________________घोषणा यह रचना मेरी अर्थात उमेश पंसारी की मौलिक एवं वास्तविक रचना है |



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