Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अध्यात्मिक कविताएं

 

||| मेरा होना और न होना .... |||

उन्मादित एकांत के विराट क्षण ;
जब बिना रुके दस्तक देते है ..
आत्मा के निर्मोही द्वार पर ...
तो भीतर बैठा हुआ वह
परमपूज्य परमेश्वर अपने खोलता है नेत्र !!!

 

तब धरा के विषाद और वैराग्य से ही
जन्मता है समाधि का पतितपावन सूत्र ....!!!

 

प्रभु का पुण्य आशीर्वाद हो
तब ही स्वंय को ये ज्ञान होता है
किमेरा होना और न होना....
सिर्फ शुन्य की प्रतिध्वनि ही है....!!!

 

मन-मंथन की दुःख से भरी हुईव्यथा से जन्मता है हलाहल ही
हमेशाऐसा तो नहीं है ...
प्रभु ,अमृत की भीवर्षा करते है कभी कभी ...
तब प्रतीत होता है ये कीमेरा न होना ही सत्य है ....!!

 

अनहद की अजेय गूँज से ह्रदय होता हैजब कम्पित और द्रवित ;
तब ही प्रभु की प्रतिच्छाया मन में उभरती हैऔर मेरे होने का अनुभव होता है !!!

 

अंतिम आनंदमयी सत्य तो यही है कि;
मैं ही रथ हूँ ,मैं ही अर्जुन हूँ ,और मैं ही कृष्ण .....!!

 

जीवन के महासंग्राम में ;मैं ही अकेला हूँ
और मैं ही पूर्ण हूँमैं ही कर्म हूँ
और मैं ही फल हूँमैं ही शरीर और मैं ही आत्मा ..
मैं ही विजय हूँ और मैं ही पराजय ;
मैं ही जीवन हूँ और मैं ही मृत्यु हूँ!

 

प्रभु मेरे ; किंचित अपने ह्रदय सेआशीर्वाद की
एक बूँद मेरे ह्रदय मेंप्रवेश करा दे !!!

 

तुम्हारे ही सहारे ही ;
मैं अब ये जीवन का भवसागर पार करूँगा ...!!!

 

प्रभु मेरे ,
तुम्हारा ही रूप बनू ;
तुम्हारा ही भाव बनू ;
तुम्हारा ही जीवन बनू ;
तुम्हारा ही नाम बनू ;
जीवन के अंतिम क्षणों में तुम ही बन सकू
बस इसी एक आशीर्वाद की परम कामना है ..
तब ही मेरा होना और मेरा न होना सिद्ध होंगा ..!

 

 



||| आहट ईश्वर की ......!!! |||

ये कैसी अजनबी आहट है ..
कौन है यहाँ , किसकी आहट है ये ...
जो मन में नए भाव जगा रही है .

 

 

ये तो तुम हो मेरे प्रभु....

 

 

हे मेरे मनमंदिर के देवता
कबसे तुझसे मिलने की प्यास थी मन में .
आज एक पहचानी सी आहट आई
तो देखा की तुम थे मेरे मन मंदिर के द्वार पर .
अहा ...कितना तृप्त हूँ मैं आज तुम्हे देखकर .
बरसो से मैंने तुम्हे जानना चाहा ,
पर जान न पाया
बरसो से मैंने तुम्हे देखना चाहा
पर देख न पाया
तुम्हे देखने और जानने के लिए
मैंने इस धरती को पूरा ढूंढ डाला .
पर तुम कहीं न मिले ..

 

और देखो तो आज तुम हो
यहाँ मेरे मन मंदिर के द्वार पर ..
और तुम्हे यहाँ आने के लिए कोई भी न रोक पाया .
न तुम्हारे बनाये हुए सूरज और चन्द्रमा
और न ही मेरे बनाये हुए झूठे संसार की बस्ती.

 

अचानक ही पहले प्रेम की और फिर मृत्यु की आहट हुई ,
मैं नादान ये जान नहीं पाया की वो दोनों तुम्हारे ही भेजे हुए दूत थे
जो की मुझसे कहने आये थे ,
कि अब तुम आ रहे हो ..आने वाले हो ...



आओ प्रभु ,
तुम्हारा स्वागत है ..
जीवन के इस अंतिम क्षण में तुम्हारे दर्शन हुए..
अहा , मैं धन्य हो गया .
तुम्हारे आने से मेरी वो सारी व्यथा दूर हो जायेंगी ,
जब तुम मुझे अपनी बाहों में समेटकर मुझे अपना लोंगे ..

 

और न जाने क्यों , अब मुझे कोई भय नहीं रहा ,
तुम्हे जो देख लिया है
तुम्हारी आहट ने
मेरे मन में एक नयी उर्जा को भर दिया है ;
कि
मैं फिर नया जन्म लूं
और तुम्हारे बताये हुए रास्तो पर चलूँ
मेरा प्रणाम स्वीकार करो प्रभु ....

 

अहा... इस आहट से मधुर और क्या होंगा ...

 

 

||| एक नज़्म : सूफी फकीरों के नाम ||

कोई पूछे की
मैं हूँ कौन
लोग कहते है की बावरा हूँ तेरी मोहब्बत में
लोग कहते है की आवारा फिरता हूँ तेरी मोहब्बत में
लोग कहते है की जुनूने साये में रहता हूँ
तेरी मोहब्बत में ;सच कहता हूँ की
क़यामत आये और मैं तुझसे मिल जाऊं
तुझमे मिल जाऊं

 

एक बार एक पर्वत पर गया
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक बार एक नदी में ढूँढा तुझे
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक समंदर ने मुझे बुलाया ,
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक झरने में देखना चाह तुझे
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था

 

फिर ,एक दिन एक ख्वाब में
अपने दिल में झाँका
लोगो ने कहा था की तू है वहां
और तू था वहां

 

जाने कहाँ कहाँ भटक आया हूँ
मदिर देखे
मस्जिद देखे
गिरजाघर भी गया
और ढूँढा तुझे गुरूद्वारे में
पंडितो से मिला,
मौलवियों से मिला
कोई तुझे जानता न था
कोई तुझे पहचानता नहीं था

 

अब थक गया हूँ मैं
मुझे अपने पास बुला ले

 

फकीरी का आलम है मुझ पर
तू दरवेश बन कर मुझ से मिल जा
इश्क का जादू है मुझ पर
तू हुस्न बन कर मुझ से मिल जा
ज़िन्दगी के सजदे किये जा रहा हूँ
तू मसीहा बन कर मुझ से मिल जा

 

तेरा मुरीद हूँ
मेरा खुदा बन कर मुझ से मिल जा

 

तारो से कहा की तुझे मेरा सलाम कहे
चाँद से कहा की तुझ तक मेरा सजदा पहुंचा दे
सूरज से कहा की मेरे दियो की रौशनी की तुझे झलक दिखला दे
पर किसी ने शायद मुझ पर ये करम मेहर नहीं किया
अब तेरी मेहर चाहिए मौला

 

मेरे महबूब मुझे अब तो मिल जा
मेरे जिस्म से मेरी रूह को आज़ाद कर दे
मुझसे मेरा सब कुछ छीन ले
कर दे राख मुझको
एक ही आरजू है अब मेरी
की मुझको , खुद से मिला दे तू
अपने में समां ले तू
अपना बना ले तू मैं तुझमे और तू मुझमे तभी मुझे सकून मिलेंगा .

 

 


||| ओ मौला रे |||

ओ मौला रे
तेरे दर का रास्ता किधर है
मैं तो ढूंढ लिया हर गाँव और हर गली
पर तेरे बांहों का आसरा कहीं न मिला
ओ मौला रे ..............

 

बहुत किताबे पढ़ी
बहुत ज्ञानी मिले
पर कोई मुझे तुझ तलक
नहीं पहुंचा पाया
तेरे दर का रास्ता किधर है
ओ मौला रे................

 

चंद साँसे और है बाकी
तेरा दीदार कर लूं
तो ये जहाँ छोड़ दूं
तेरे दर का रास्ता किधर है
ओ मौला रे ..............

 

कोई तो साज़ बजा
कोई तो नज़्म सुना
कोई तो गीत गा ले
तेरे दर को जानता हो कोई
ऐसा कोई परिंदा हो तो उसे भेज
तेरे ज़ेरेसाया अब फ़ना होना है
तेरे दर का रास्ता किधर है
ओ मौला रे ..............

 






||| जोगन|||


मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
तेरे बिन कोई नहीं मेरा रे ; हे श्याम मेरे !!
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

 

तेरी बंसुरिया की तान बुलाये मोहे
सब द्वारे छोड़कर चाहूं सिर्फ तोहे
तू ही तो है सब कुछ रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

 

मेरे नैनो में बस तेरी ही तो एक मूरत है
सावंरा रंग लिए तेरी ही मोहनी सूरत है
तू ही तो एक युगपुरुष रे ,हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

 

बावरी बन फिरू , मैं जग भर रे कृष्णा
गिरधर नागर कहकर पुकारूँ तुझे कृष्णा
कैसा जादू है तुने डाला रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ;हे घनश्याम मेरे !

 

प्रेम पथ ,ऐसा कठिन बनाया ; मेरे सजना
पग पग जीवन दुखो से भरा ; मेरे सजना
कैसे मैं तुझसे मिल पाऊं रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

 








||| आओ सजन |||

आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !
तेरे दर्शन को तरसे है ; मेरे भीगेनयन !
घर , दर सहित सजाया है ; अपने मन का आँगन !!
आओसजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

 

तू नहीं तो जग , क्यों सूना सूना सा लगताहै !
तू नहीं तो हर कोई , पराया सा नज़र आता है !
इतनी बड़ी दुनिया में कौन है यहाँ मेरा ; तेरे बिन !
आओसजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!


बहुत घूम चूका मैं ; मंदिर ,मस्जिद और गुरुद्वारे !
किसी अपने को न मिल पाया ; मैं किसी भी द्वारे...!
कहीं भी तू न मिला , भटके है हर जगह मेरा मन !!
आओसजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

 

जीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
सबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
आओसजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

 

बुल्ले शाह ने कहा था ' रमज सजन दी होर '
आज समझा हूँ कि , क्यों खींचे तू मुझे अपनी ओर !
तू ही मेरा सजन ,बस तू ही मेरा सजन !
आओसजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

 





||| स्वामी विवेकानंद |||

आज भी परिभाषित है
उसकी ओज भरी वाणी से
निकलेहुए वचन ;
जिसका नाम था विवेकानंद !

 

उठो ,जागो , सिंहो ;
यही कहा था कई सदियाँ पहले
उस महान साधू ने ,
जिसका नाम था विवेकानंद !

 

तब तक न रुको ,
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो ...
कहा था उस विद्वान ने ;
जिसका नाम था विवेकानंद !

 

सोचो तो तुम कमजोर बनोंगे ;
सोचो तो तुम महान बनोंगे ;
कहा था उस परम ज्ञानी ने
जिसका नाम था विवेकानंद !

 

दूसरो के लिए ही जीना है
अपने लिए जीना पशु जीवन है
जिस स्वामी ने हमें कहा था ,
उसका नाम था विवेकानंद !

 

जिसने हमें समझाया था की
ईश्वर हमारे भीतर ही है ,
और इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है
उसका नाम था विवेकानंद !



आओ मित्रो , हम एक हो ;
और अपनी दुर्बलता से दूर हो ,
हम सब मिलकर ; एक नए समाज ,
एक नए भारत का निर्माण करे !
यहीहमारासच्चानमनहोंगा ;
भारत के उस महान संत को ;
जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद !!!

 




||| मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला |||

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

 

जब हर कोई मेरा साथ छोड़ दे ,
दुनिया के भीड़ में तन्हा छोड़ दे
तब ज़िन्दगी की तन्हाइयों में
एक तेरा ही तो साया ;
मेरे साथ होता है मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

 

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

 

प्रीत ; अब मुझे किसी से न रही
कोई अपना ,कोई पराया न रहा
हर सुबह ,हर शाम
बस एक तेरा ही नाम
अब मेरे होठों पर है मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

 

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

 

मेरी दुनिया में ,अब मेरा मन नही लगता
यहाँ की बातों में कोई दिल नही बसता
सुना है तेरी दुनिया में बड़े जादू होतें है
तेरी दुनिया में चाहत की नदिया बहती है
मुझे भी अपनी दुनिया में बुला ले ,मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

 

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

 

मुझे अब ; किसी से कोई शिकवा नही ,
अपना - पराया , सब कुछ छोड़ यही ;
व्यथित हृदय के साथ , तेरे दर पर आया हूँ ,
दोनों हाथों की झोली फैलाये हुए हूँ
मेरी झोली अपने प्यार से भर दे मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

 

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला !
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला !!
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला !!!

 



||| रूपांतरण|||

एक भारी वर्षा की शाम में अकेले भीगते हुए ... ..
और अंधेरे आकाश की ओर ऊपर देखते हुए ..
जो की भयानक तूफ़ान के साथ गरज रहा था
और .. आसपास कई काले बादल भी छाए हुए थे
मैंने प्रभु से प्रार्थना करना शुरू कर दिया की ;
अधिक से अधिक ,ऐसी भारी बारिश के थपेड़ो पड़े ..
मेरे शरीर पर, मेरे मन और मेरी आत्मा पर;

 

और यह बारीश ऐसी हो की मेरा अतीत धुल जाए . ..
मेरे सभी वो पाप , जो मैंने अनजाने में किये हो ,वो भी बह जाए ...
यह तेज़ बारिश मेरे निराधार अहंकार को पिघला दे
और साथ में ही मेरे क्रोध को भी ख़त्म कर दे ,
हमेशा के लिए!

 

साथ ही मेरी सांसारिक विश्वासोंऔर धारणाओ को भी ये मिटटी में मिला दे
हे प्रभु जो भी गलत काम मुझसे हुए हो , ये वर्षा उन्हें मिटा दे .

 

मैं भगवान की ओर बड़े ही उम्मीद से देख रहा हूँ ...
एक निर्धन बांझ भूमि की तरह ... ...
और एक लम्बी उम्र से ;ऐसी ही बारीश की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ..
जो जीवन की बूंदों से मुझे भर दे
जो प्यार की बूंदों से मेरी आत्मा को तृप्त कर दे
जो सदभाव की बूंदों से मेरा संसार को भर दे ..

 

ये वर्षा मेरे भीतर भर दे हंसी को और खुशियों को
और एक पवित्र , परम आनंद से मैं भर जाऊं ..

 

बारिश के इस भारी रात के बाद ....
मैं फिर से जीवन की एक नई सुबह शुरू कर सकू ..
जिसमे ताज़ी हवा हो एक मीठी फुसफुसाहट की ध्वनि के साथ
और मिले मुझे एक शानदार दृष्टि ;
जिसके कारण मैं अपने भविष्य की सड़क को देख सकू.
और जी सकू एक सुन्दर जीवन ;जो की मैं कभी भी नहीं जी सका .








हे भगवान, कृपया मुझे फिर से आशीर्वाद दे,
एक नए जीवन के लिए ... ...
हे भगवान,
कृपया मुझे एक नए बच्चे में फिर से बदल दे
ताकि ,मैं फिर से उल्लाहास , जीवन , आनंद और गति से भर जाऊं.

 


कविताएं © विजयकुमार

 

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