Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

…और फिर तुम्हारी याद

 

एक छोटा सा धुप का टुकड़ा
अचानक ही फटा हुआ आकाश
बेहिसाब बरसती बारिश की कुछ बूंदे
और तुम्हारे जिस्म की सोंघी सुगंध
……और फिर तुम्हारी याद

 

 

उजले चाँद की बैचेनी
अनजान तारो की जगमगाहट
बहती नदी का रुकना
और रुके हुए जीवन का बहना
……और फिर तुम्हारी याद

 

 

टूटे हुए खपरैल के घर
राह देखती कच्ची सड़क
टुटा हुआ एक पुराना मंदिर
और रूठा हुआ कोई देवता
……और फिर तुम्हारी याद

 

 

आज एक नाम खुदा का
और आज एक नाम तेरा
आज एक नाम मेरा भी
और फिर एक नाम इश्क का
……और फिर तुम्हारी याद

 

 



मर्द और औरत

हमने कुछ बनी बनाई
रस्मो को निभाया ;
और सोच लिया कि;
अब तुम मेरी औरत हो और मैं तुम्हारा मर्द !!!

 

 

लेकिन बीतते हुए समय ने जिंदगी को;
सिर्फ टुकड़ा टुकड़ा किया |
तुमने वक्त को ज़िन्दगी के रूप में देखना चाहा ;
मैंने तेरी उम्र को एक जिंदगी में बसाना चाहा |
कुछ ऐसी ही सदियों से चली आ रही बातो ने ;
हमें एक दुसरे से , और दूर किया !!

 


प्रेम और अधिपत्य ;
आज्ञा और अहंकार ;
संवाद और तर्क-वितर्क
इन सब वजह और बेवजह की बातो में ;
मैं और तुम सिर्फ मर्द और औरत ही बनते गये ;
इंसान भी न बन सके अंत में |||

 

 

कुछ इसी तरह से ज़िन्दगी के दिन,
तन्हाईयो की रातो में ढले ;
और फिर तनहा रात उदास दिन बनकर उगे !

 

 

फिर उगते हुए सूरज के साथ ;
चलते हुए चाँद के साथ ;
और टूटते हुए तारों के साथ ;
हमारी चाहते बनी और टूटती गयी ;
और आज हम अलग हो गये है !!!

 

 

बड़ी कोशिश की जानां ;
मैंने भी और तुने भी लेकिन ;
न मैं तेरा पूरा मर्द बन सका,
और न तू मेरी पूरी औरत |||

 

 

खुदा भी कभी कभी ;
अजीब से शगल किया करता है ||
.........है न जानां !!!

 

 

 

विजय कुमार सप्पत्ति

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ