मेरी ज़िन्दगी के दश्त,
बड़े वीराने है
दर्द की तन्हाईयाँ,
उगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबोंकी जगह.......!!
तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम.......!!
किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!
अक्सर शफ़क शाम के
सन्नाटों में यादों के दिये ;
जला लेती हूँ मैं...
लम्हा लम्हा साँस लेती हूँ मैं
किसी अपने के तस्सवुर में जीती हूँ मैं..
सदियां गुजर गयी है...
मेरे ख्वाब,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके...
मैं मरीजे- उल्फत बन गई हूँ
वीरानों की खामोशियोंमें ;
किसी साये की आहट का इन्तजार है...
एक आखरी आस उठी है ;
मन में दफअतनआज....
कोई भटका हुआ मुसाफिर ही आ जाये....
मेरी दरख्तों को थाम ले....
अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की " हीर " बनूँ...
[ Meanings : दश्त : जंगल // शफ़क : डूबते हुए सूरज की रोशनी // दफअतन : अचानक ]
विजय कुमार सप्पत्ति
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