सूरज चढ़ता था और उतरता था....
चाँद चढ़ता था और उतरता था....
जिंदगी कहींभी रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान पीछे छुठे जा रहे थे ,
लेकिन मैं वहीं खड़ा था....
जहाँ तुमने मुझे छोडा था....
बहुत बरस हुए ,तुझे ; मुझे भुलाए हुये !
मेरे घर का कुछ हिस्सा अब ढ़ह गया है !!
मुहल्ले के बच्चे अब जवान हो गए है ,
बरगद का वह पेड़ ,जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
शहर वालों ने काट दिया है !!!
जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला ,जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....
विजय कुमार सप्पत्ति
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