जब हम जुदा हुए थे..
उस दिन अमावस थी !!
रात भी चुप थी और हम भी चुप थे.....!
एक उम्र भर की खामोशी लिए हुए...!!!
मैंने देखा,तुमने सफ़ेद शर्ट पहनी थी....
जो मैंने तुम्हे ; तुम्हारे जन्मदिन पर दिया था..
और तुम्हारी आँखे लाल थी
मैं जानती थी,
तुम रात भर सोये नही...
और रोते रहे थे......
मैं खामोश थी
मेरे चेहरे पर शमशान का सूनापन था.
हम पास बैठे थे और
रात की कालिमा को ;
अपने भीतर समाते हुए देख रहे थे...
तुम मेरी हथेली पर अपनी कांपती उँगलियों से
मेरा नाम लिख रहे थे...
मैंने कहा,
ये नाम अब दिल पर छप रहा है..
तुमने अजीब सी हँसी हँसते हुए कहा,
हाँ; ठीक उसी तरह
जैसे तुमने एक दिन अपने होंठों से ;
मेरी पीठ पर अपना नाम लिखा था ;
और वो नाम अब मेरे दिल पर छपा हुआ है.....
मेरा गला रुंध गया था,
और आँखों से तेरे नाम के आंसू निकल पड़े थे..
तुम ने कहा,एक आखरी बार वहां चले,
जहाँ हम पहली बार मिले थे....
मैंने कहा,
अब,वहां क्या है...
सिवाए,हमारी परछाइयों के..
तुमने हँसते हुए कहा..
बस, उन्हीपरछाइयों के साथ तो अब जीना है .
हम वहां गए,
उन सारी मुलाकातों को याद किया और बहुत रोये....
तुमने कहा,इस से तो अच्छा था की हम मिले ही न होते ;
मैंने कहा,इसी दर्द को तो जीना है,
और अपनी कायरता का अहसास करते रहना है..
हम फिर बहुत देर तक खामोश बुत बनकर बैठे रहे थे...
झींगुरों की आवाज़,पेड़ से गिरे हुए पत्तो की आवाज़,
हमारे पैरो की आवाज़,हमारे दिलों की धड़कने की आवाज़,
तुम्हारे रोने की आवाज़…. मेरेरोने की आवाज़….
तुम्हारी खामोशी.... रात की खामोशी....
मिलन की खामोशी ….जुदाई की खामोशी......
खामोशी की आवाज़ ….
सन्नाटों की आवाज़...
पता नही कौन चुप था ; किसकी आवाज़ आ रही थी..
हम पता नही कब तक साथ चले,
पता नही किस मोड़ पर हमने एक दुसरे का हाथ छोड़ा
कुछ देर बाद मैंने देखा तो पाया,मैं अकेली थी...
आज बरसो बाद भी अकेली हूँ !
अक्सर उन सन्नाटो की आवाजें,
मुझे सारी बिसरी हुई,बिखरी हुई ;
आवाजें याद दिला देती है..
मैं अब भी उस जगह जाती हूँ कभी कभी ;
और अपनी रूह को तलाश कर,उससे मिलकर आती हूँ…
पर तुम कहीं नज़र नही आतें..
तुम कहाँ हो..........
विजय कुमार सप्पत्ति
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY