Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आदमी पे बरसता आदमी

 

आदमी पे बरसता आदमी
मोह्हबत को तरसता आदमी
मैंने दूंढ ली रोने की वजह
एक दूजे पे हँसता आदमी
बेघर है ख्यालात नेक जब
तो कैसे बसता आदमी
दिल ही तो दिलाता है मंजिल
देखे कहाँ ये रास्ता आदमी

 

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