Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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असली पात्र

 

वैशाली भरद्वाज (pichu sharma)

 

 

आज सेठ जी के बेटे का जन्मदिन था ,सारे घर को फूलों से सजाया गया था |चमकदार लाइटों से सजाया गया था | शहर के प्रभावशाली लोगो को आमंत्रित किया गया था | सेठ जी का कपडे का कारोबार अच्छे से फल फूल रहा था | शाम को केक कटने वाला था लेकिन उससे पहले सेठ जी ने अपने बेटे की लंबी आयु के लिए हवन का आयोजन किया था और इक्कीस पंडितो को जिमाने की व्यवस्था की थी| तम्बू लगा कर पकवान बनाने की व्यवस्था की गयी थी |एक से बढ़कर एक पकवान की खुशबू उड़ रही थी और आस पास के लोगों को ललचा रही थी |

 

सारे शहर में इस आयोजन की चर्चा हो रही थी |

 

इक्कीस पंडितों को एक कतार में बैठाया गया और नए बर्तनों में खाना परोसा गया | सेठ जी खुद हाथ बाँध कर खड़े थे | चेहरे के भाव खुशी और दर्प का मिला जुला अतिरेक था | पंडितो को दान करने के लिए नए नए कपडे भी मंगवा रखे थे ,हवन की खुशबू ने सारे वातावरण को पवित्र कर रखा था |तभी बाहर दरवाजे पर कुछ मैले कपडे पहने हुए कुछ मंगते बच्चे आकर खड़े हो गए और चिल्लाने लगे | उनको पूरा विश्वास था कि सेठ जी के बेटे के भाग्य से उन्हें भी कुछ मिल सकता है लेकिन उन्हें देखते ही सेठ जी त्योरियां चढ़ गयी और उन्होंने उन बच्चों को गालियाँ बकनी शुरू कर दी ,पंडित लोग आराम से खाना खाते रहे ,आखिर वो आमंत्रित थे और पुण्य के भागीदार थे | भिखारी बच्चे आस भरी आखों से देखते रहे |

 

हट्टे कट्टे और संपन्न पंडित दान लेकर चले गए और सही जरूरतमंद ताकते रहे | सेठ जी का दान धर्म शहर वालों को तो समझ आ गया लेकिन भगवान सोचने लगे कि दान का असली पात्र क्या वो पंडित ही थे ?

 

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