vaishali bhardwaj
बचपन के दिन पूंजी जैसे
खोले खुशियों की कूंजी जैसे
फटके ना पास तनाव कोई,ना ताना ना घाव कोई
धूप में भी मुसकाते थे,भले मिले ना छॉव कोई
बारिश में वो कूदा-कादी,बकबक करने की आजादी
...हँस कर कीचड़ में धँसते थे हम,खुद उलझन में फँसतें थे हम
भूल गए हम आखिर कैसे
कि बचपन के दिन पूंजी जैसे
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